रतन टाटा चाहते थे कि हर मध्यवर्गीय परिवार के पास अपनी एक कार हो. साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखना चाहते थे कि इस कार को खरीदने का बोझ मध्यवर्गीय परिवार की जेब पर भी भारी ना पड़े. इसके लिए रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था.

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एक आदमी था. वह अपनी लग्जरी कार से शहर की सड़कों को रोजाना नापता रहता था. इस दौरान उसने देखा कि अकसर एक परिवार स्कूटर पर सवार होकर एक साथ कहीं जाता है. स्कूटर में इतनी छोटी सी जगह में बच्चे माता-पिता के बीच किसी तरह से एडजस्ट हो पाते थे. उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे उनकी हालत किसी सैंडविज जैसी हो. यह देखर उस आदमी के अंदर का इंसान जाग जाता था. वह सोचने लगता था कि कितना अच्छा होता कि इन लोगों के पास एक छोटी सी ही सही लेकिन एक कार होती. वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठकर जाते. उन्हें धूल और बारिश की भी चिंता नहीं सताती. स्कूटर पर इस तरह लदकर जाते लोगों को देखकर उस आदमी को एक छोटी कार बनाने की सोची. इसके बाद से वह सस्ती कार के सपने को जमीन पर उतारने में लग गया. निचले मध्य वर्ग के लोगों के लिए सस्ती कार का सपना देखने वाले इस व्यक्ति का नाम था रतन नवल टाटा.रतन टाटा ने अपने इस सपने को कई बार लोगों से साझा भी किया था.

अलविदा रतन टाटा: स्कूटर में बीवी-बच्चों संग भीगते मिडिल क्लास के लिए नैनो का सपना आप ही देख सकते थेरतन टाटा चाहते थे कि हर मध्यवर्गीय परिवार के पास अपनी एक कार हो. साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखना चाहते थे कि इस कार को खरीदने का बोझ मध्यवर्गीय परिवार की जेब पर भी भारी ना पड़े. इसके लिए रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था.

एक आदमी था. वह अपनी लग्जरी कार से शहर की सड़कों को रोजाना नापता रहता था. इस दौरान उसने देखा कि अकसर एक परिवार स्कूटर पर सवार होकर एक साथ कहीं जाता है. स्कूटर में इतनी छोटी सी जगह में बच्चे माता-पिता के बीच किसी तरह से एडजस्ट हो पाते थे. उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे उनकी हालत किसी सैंडविज जैसी हो. यह देखर उस आदमी के अंदर का इंसान जाग जाता था. वह सोचने लगता था कि कितना अच्छा होता कि इन लोगों के पास एक छोटी सी ही सही लेकिन एक कार होती. वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठकर जाते. उन्हें धूल और बारिश की भी चिंता नहीं सताती. स्कूटर पर इस तरह लदकर जाते लोगों को देखकर उस आदमी को एक छोटी कार बनाने की सोची. इसके बाद से वह सस्ती कार के सपने को जमीन पर उतारने में लग गया. निचले मध्य वर्ग के लोगों के लिए सस्ती कार का सपना देखने वाले इस व्यक्ति का नाम था रतन नवल टाटा.रतन टाटा ने अपने इस सपने को कई बार लोगों से साझा भी किया था.

अपने इस सपने को लेकर ही रतन टाटा ने एक बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में लिखा था कि आर्किटेक्चर स्कूल से होने का फायदा यह था कि मैं खाली समय में डूडल बनाता था.उन्होंन लिखा था,”मैंने खाली समय में डूडल बनाते समय यह सोचता था कि मोटरसाइकिल ही अगर ज्यादा सुरक्षित हो जाए तो कैसा रहेगा. ऐसा सोचते-सोचते मैंने एक कार का डूडल बनाया, जो एक बग्घी जैसा दिखता था. उसमें दरवाजे तक नहीं थे. इसके बाद मैंने सोच लिया कि मुझे ऐसे लोगों के लिए कार बनानी चाहिए और फिर टाटा नैनो अस्तित्व में आई, जो कि हमारे आम लोगों के लिए थी. हमारे लोगों का यहां मतलब देश की वैसी जनता से है, जो कार के सपने तो देखती है, लेकिन वह कार खरीदने में सक्षम नहीं है.” रतन टाटा ने जिस कार का सपना देखा, उसे नाम दिया- टाटा नैनो. टाटा की यह कार लखटकिया के नाम से भी मशहूर हुई.

रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था. इस टीम ने टाटा ‘एस’नाम से छोटा ट्रक बनाया था.यह छोटा ट्रक छोटा हाथी के नाम से काफी मशहूर हुआ. वाघ और उनकी टीम ने करीब पांच साल तक नैनो पर काम किया.

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Author: Samaj Tak

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