होली और सीएसपी की दुर्दशा: बैंक-सरकार की रंगीन लूट

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होली का त्यौहार आते ही हर कोई रंगों में सराबोर हो जाता है, लेकिन बैंकिंग सेक्टर के सीएसपी (कस्टमर सर्विस पॉइंट) संचालकों की जिंदगी में पहले से ही एक अलग ही ‘रंग’ भरा रहता है—रोज़मर्रा की परेशानी और सरकारी उदासीनता का रंग।

बैंकों का गुलाबी धोखा और सरकार की नीली चुप्पी

हर साल होली पर बैंक अधिकारी छुट्टी मनाते हैं, और गरीब ग्राहकों को पैसा निकालने की ज़िम्मेदारी बेचारे सीएसपी पर आ जाती है। बैंक कहता है—“ग्राहक को परेशानी नहीं होनी चाहिए,” लेकिन सीएसपी को पैसे ही नहीं मिलते! कैश दो, कैश दो का नारा लगता है, लेकिन बैंक खजाने का ताला ऐसे बंद कर देता है जैसे होली पर भांग खाकर सो गया हो!

सरकार डिजिटल इंडिया का ढोल पीट रही है, लेकिन जब सीएसपी कैश की डिमांड करता है, तो बैंक उसे ऐसे देखता है जैसे होली के बाद जलेबी बची हो और कोई मांग रहा हो। और NBC (बिजनेस कॉरस्पॉन्डेंट कंपनियाँ) अपना अलग गुलाल उड़ाए रहती हैं—सीएसपी को झूठे वादों में रंग देती हैं, मगर जब पेमेंट की बात आती है, तो रंग फिका पड़ जाता है।

सीएसपी: बैंकिंग का अबीर, मगर खुद बदहाली की तकदीर

सीएसपी की हालत ऐसी हो गई है जैसे होली की शाम का वह बंदा, जिसने पूरे मोहल्ले को रंग लगाया, लेकिन खुद अकेला घर लौटा—पैसे भी नहीं, सम्मान भी नहीं।

NBC कंपनियाँ कहती हैं—”हम तुम्हारे साथ हैं!” लेकिन जब कमीशन की बात आती है तो चुप्पी साध लेती हैं। बैंक बोलता है—”धैर्य रखो!” मगर खुद महीने के पहले ही दिन सैलरी उठा लेता है। सरकार डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के नाम पर सीएसपी से मुफ्त की सेवा करवाती है, और इनाम में देती है—’संघर्ष’।

रंग दो इस सिस्टम को!

होली पर सबको अच्छे रंग चाहिए, लेकिन सीएसपी को सिर्फ़ एक ही रंग चाहिए—इंसाफ़ का हरा रंग, इज्जत का लाल रंग, और मेहनत के पैसे का सुनहरा रंग!

बैंक और सरकार को होली पर कम से कम एक वादा करना चाहिए—“अब सीएसपी को भी त्यौहार मनाने देंगे, ना कि उन्हें सिर्फ़ दूसरों का त्योहार बनाने में झोंक देंगे।” वरना एक दिन ऐसा आएगा कि सीएसपी बैंक की चौखट पर रंग नहीं, अपनी मेहनत की धूल फेंकने मजबूर हो जाएगा!

Samaj Tak
Author: Samaj Tak

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