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इंस्पेक्टर की ‘गन-स्टाइल’ तस्वीर वायरल, 10 साल पुरानी पोस्ट पर कार्रवाई महज फेसबुक आईडी लॉक! नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां, शिकायतकर्ता बोले– क्या यही है कानून का समान व्यवहार?

 

लखीमपुर खीरी जनपद के हैदराबाद थाने में तैनात इंस्पेक्टर प्रवीर गौतम इन दिनों गंभीर सवालों के घेरे में हैं। कारण है—फेसबुक पर वायरल हो रही दो पुरानी तस्वीरें, जिनमें वह खुलेआम हथियार लहराते नजर आ रहे हैं। पहली तस्वीर 21 मई 2015 की है, जिसमें इंस्पेक्टर महोदय एक सरकारी दफ्तर के अंदर कुर्सी पर बैठे हैं और एक पिस्तौल को फिल्मी अंदाज़ में कैमरे के सामने दिखा रहे हैं। दूसरी तस्वीर 29 दिसंबर 2015 की है, जो पुलिस प्रशिक्षण के दौरान की बताई जा रही है, जहां वे वर्दी के साथ खुले मैदान में हथियार पकड़े दिख रहे हैं। खास बात यह है कि इन दोनों तस्वीरों को खुद इंस्पेक्टर ने अपनी फेसबुक आईडी से पोस्ट किया था, जिसे बाद में लॉक कर दिया गया। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस प्रकार से हथियारों के साथ सार्वजनिक रूप से फोटो पोस्ट करना उत्तर प्रदेश पुलिस के सेवा नियमों और आचरण संहिता के तहत वैध है?

 

इस पूरे मामले का खुलासा रायबरेली जनपद निवासी समाजसेवी विजय प्रताप सिंह ने किया है। उन्होंने न सिर्फ इन तस्वीरों की सत्यता को उजागर किया बल्कि इसकी लिखित शिकायत पुलिस अधीक्षक, लखीमपुर खीरी को स्पीड पोस्ट (संख्या: RU241184295IN) के माध्यम से भेजकर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। हालांकि अब तक इस मामले में कोई ठोस विभागीय जांच या दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई है। सिर्फ फेसबुक आईडी लॉक कर देने को ही “कार्रवाई” मान लिया गया है। विजय प्रताप सिंह का कहना है कि अगर यही कृत्य कोई आम नागरिक करता तो उस पर आर्म्स एक्ट, आईटी एक्ट और भारतीय दंड संहिता की कई धाराएं तत्काल प्रभाव से लगाई जातीं और शायद उसे जेल भेज दिया जाता। परंतु जब एक वर्दीधारी इस प्रकार के नियमों की सार्वजनिक अवहेलना करता है, तब उस पर सिर्फ सतही ‘आईडी बंद’ जैसी खानापूर्ति की जाती है।

 

इस प्रकरण ने यूपी पुलिस की आंतरिक अनुशासन प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या कोई पुलिस अधिकारी इस प्रकार से हथियार लेकर फोटो शूट कर सकता है? क्या यह आचार संहिता और शस्त्र अधिनियम का उल्लंघन नहीं है? क्या इससे पुलिस विभाग की साख को ठेस नहीं पहुंचती? क्या सोशल मीडिया पर ऐसे फोटो डालना ‘दबंगई’ नहीं मानी जाएगी? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल—अगर देश का एक आम नागरिक ऐसे हथियार लेकर पोस्ट करता, तो क्या प्रशासन उसकी प्रोफाइल बंद करके बैठ जाता या उसके खिलाफ तत्काल कठोर कार्रवाई होती?

 

समाजसेवी विजय प्रताप सिंह ने दो टूक कहा है कि कानून का मतलब है ‘समानता’, फिर चाहे वह नागरिक हो या वर्दीधारी। ऐसे अफसरों पर यदि सख्त कार्रवाई नहीं होती, तो यह एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी, जिसमें वर्दीधारी खुद को कानून से ऊपर समझने लगेंगे। उन्होंने मांग की है कि इस पूरे मामले में इंस्पेक्टर प्रवीर गौतम को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए, उनके खिलाफ विभागीय जांच बैठाई जाए और सोशल मीडिया पर शस्त्र प्रदर्शन करने के लिए भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1959 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया जाए।

 

आज जब पुलिस की भूमिका को लेकर जनता में अविश्वास पनप रहा है, ऐसे मामलों में कठोर और पारदर्शी कार्रवाई ही लोगों का भरोसा कायम रख सकती है। वरना यह धारणा गहराती जाएगी कि वर्दीधारी कुछ भी करें, उन्हें कोई नहीं छू सकता। सवाल ये नहीं कि तस्वीरें 10 साल पुरानी हैं, सवाल ये है कि क्या इस प्रकार की ‘स्टाइल’ हमारे पुलिस सिस्टम की गरिमा के अनुरूप है?

 

इस पूरे मुद्दे पर पुलिस प्रशासन की चुप्पी और महज ‘फेसबुक आईडी बंद’ करना कानून के साथ किया गया मज़ाक है। अगर समय रहते सख्ती नहीं दिखाई गई, तो कल हर वर्दीधारी कैमरे के सामने पिस्तौल लहराकर ‘दबंगई’ का प्रदर्शन करेगा, और लोग डर के साए में जीने को मजबूर हो जाएंगे।

 

नारा: “वर्दी का घमंड नहीं, संविधान की मर्यादा निभाओ — वरना जनता सवाल पूछेगी, और जवाब देना ही पड़ेगा!”

Samaj Tak
Author: Samaj Tak

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