पुलिस से पुलिस की मित्रता और नफरत:

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अगर आपके अपने माता-पिता व सगे भाई को कभी अपने गृह थाने की पुलिस से मदद की बात करते हैं तो उनका हाल पूछना तो बङी बात है? हमारे द्वारा वहाँ की पुलिस से मिन्नत ही करनी पड़ती है। साहब देख लो, मैं भी पुलिस में हूँ, फलानी जगह पोस्टेड हूँ।
मेरे परिवार की मदद कर दो, तो वो ऐसे बात करेंगे… ऐसा है वैसा है, बड़े साहब की नाॅलिज़ में है। ये है, वो है। दुनिया भर के कानून का पाठ पढ़ा देंगे। (₹लेने के लिए)😡😡 जैसे सामने वाला मूर्ख हो, बस तुम ही एक पुलिस में हो।

गृह-थाने की छोड़ो, अपने ही थाने की बात ले लो। कोई भी कहीं भी,
जहां दिन रात एक साथ रह रहे हैं और एक मेस में खाना खाते हैं। कभी कभी तो वहां भी खुद को बेचारा सा महसूस होना पड़ता है।

हर रोज़ आदेश आएंगे… बीट में जाओ, घूमो, लोगो से संपर्क करो, संबंध बनाओ, जानकारी कलेक्ट करो।
ये सब चीज़ इंसान से ही तो होगी
या गांव की दीवारों और खेत खलिहानों से होगी। जब सिपाही बीट में जायेगा तो किसी के पास बैठेगा भी, चाय-पानी भी पियेगा। दस-पांच लोगों से दुआ सलाम भी होगी। कभी-कभी खाना भी खाएंगे।
अब आती है बात उन लोगों की, जिनके साथ हम उठ-बैठ रहे हैं।
और कभी उनके साथ कोई बात हो जाती है या उनके किसी पड़ोसी का कोई मामला थाने आ जाता है।

तब उन गाँव वालों को याद आती है दीवान जी की। हमारी उनसे अच्छी बात है। घर आते जाते हैं, शायद वो हमारी मदद कर दें, इस आशा में वो दीवान जी (सिपाही) को कॉल करते हैं।📞 ..दीवान जी AB का CD से झगड़ा हो गया है, लेकिन X का नाम भी आ गया है। पुलिस उसे भी थाने ले आई है, जबकि उसका झगड़े से कोई मतलब नहीं था। दीवानजी, उनकी मदद कर देना।

उन्होंने तो बड़ी आशा में फोन कर दिया। दीवान जी अपने हैं। मदद कर देंगे। X के घरवालों को सांत्वना दी।

लेकिन अब यहां फँस जाते हैं बेचारे दीवान जी। करें तो क्या करें? क्योंकि दीवान जी का गाँव/ बीट मे ही तो रौब चलता है, थाने में उसकी क्या औकात है। ये तो बेचारे दीवानजी लोग ही जानते हैं।
अब दीवान जी कोशिश करते हैं हल्के के दरोगा जी से बात करने की। क्योंकि SO/SHO सर से तो बेचारे की हिम्मत है ही नहीं बात करने की। अगर हिम्मत करके बात करेगा भी तो उसे ऐसे लगेगा, जैसे वो (सिपाही) खुद ही मुल्ज़िम है और हवालात के अंदर से जैसे वो ही रिक्वेस्ट कर रहा हो। साहब देख लेते एक बार… इसका तो कोई दोष नहीं है। अगर छूट सके तो छोड़ दो।
उधर से सीधा क्या जवाब आएगा… अरे ये तो 🤬🤬 जेल जाएगा।

अब बेचारे दीवान जी करें तो क्या करें ?
निर्दोष लोगों की भी मदद नहीं करवा पा रहे हैं।
अब उस आदमी को क्या मुँह दिखाए दीवान जी, जिसने बड़ी आशा में दीवान जी के पास फोन किया। जिसकी चाय पीते हैं, जिससे इलाके की हर जानकारी प्राप्त करते हैं।
दीवान जी तो हो गए झंडू-बाम।

उधर से दो-चार बार फोन आएगा। दीवान जी सच-झूठ हर बार यही कहते रहेंगे कि कर रहा हूं मैं बात साहब से। अभी साहब बैठे नहीं हैं, बाहर हैं, अपने कमरे में हैं, अभी साहब का मूड खराब है।
किसी दूसरे साहब ने कह दिया… देख लो अगर थोडी व्यवस्था कर दे, तो कर लेंगे विचार।
दीवान जी की और झंड हो गयी।
अब उनको व्यवस्था करने को भी बोलो, जिनके घर का नमक खाया है।

दीवान जी उनसे व्यवस्था करने को तो कह नही सकते।आखिरकार वो कह ही देते हैं कि साहब नहीं मान रहे हैं, चालान होगा।
अब गांव/बीट वाले भी समझ गए कि दीवान जी तो यहीं के शेर हैं।
सारा दिन हमें फोन करके कहते रहते हैं, ये नाम-पता बता दो, ये कौन है, कहाँ रहते हैं, गाँव मे है या नहीं, फलाना-फलाना।

अभी कहानी खत्म नही हुई…

फिर उसी गाँव से या आस पास से कोई चुटकी भर वजूद का छुटभैया नेता आता है और हां चुटकी भर वजूद का ही, जिसे वो ही दीवान जी एक दो-बार हड़का भी चुके हो शायद।

और वो थाने आकर X को छुड़ाकर ले जाता है।
अब बताओ क्या इज्जत रह गयी दीवान जी की।
क्या इज्जत छोड़ी, अपने मातहत की।

क्या अब दीवान जी को चाय मिल जाएगी, क्या अब दीवान जी को वो आदमी कभी कोई सूचना दे देगा ?

जिसे एक घंटे पहले चालान करके जेल भेजा जा रहा था, वो घर है।
अपने साथी कर्मचारी के कहने पर नहीं, किसी नेता के कहने पर।
क्योंकि थाने की ड्यूटी वो नेता करेगा।
गस्त वो करेगा, कर्मचारी नहीं।

अब वो आदमी दीवान जी को अपने पास क्यों बैठाएगा ? वो तो नेता जी के पास बैठा करेगा अब। क्योंकि दीवान जी तो जेल भिजवा रहे थे या व्यवस्था करवा रहे थे।
जब SO/SHO सर ने कुछ भी लिया, पर छोड़ तो दिया।
दीवान जी ही डिफाल्टर हैं।
सही कहते हैं… पुलिस वाले किसी के सगे नहीं होते।

बना दी गई लोगो के मन में ये छवि। पैदा कर दी गयी ये बात।
और हुक्मरान कहते हैं कि पब्लिक में विश्वास बनाओ।
जब लोगो को अपने अधीनस्थों पर ही विश्वास नहीं तो दीवान जी किस चीज़ का विश्वास बनायें लोगो का।

हर अधिकारी कहता है कि पब्लिक से जुडो। उनको अपने से जोड़ो। उन्हें सुरक्षा की भावना दो।
मैं उन महोदय से कहना चाहूंगा कि आप भी अपने अधीनस्थों से जुडो। उनका विश्वास जीतो, उनमें भी सुरक्षा की भावना पैदा करो।
फिर सब सही हो जाएगा ऑटोमेटिक।

दीवान जी तो हल्के/बीट के एक एक आदमी का ब्यौरा रखें। जो 20 साल पहले इलाका छोड़कर चला गया हो या जिसका ये भी नहीं पता कि वो जिंदा है या मर गया। उसका भी नाम पता नोट करके रखें कि वो अब कहाँ है?

तो मैं उन श्रीमान जी से एक छोटा सा सवाल ये करना चाहूंगा कि कृपया करके उन चार सिपाहियों का नाम आप बता दो। जो दिन-रात आपके साथ, आपके स्क्वाड में रहते हैं। केवल उन चार सिपाही का नाम बता दो, याद है क्या ? वो कौन हैं ???

मेरा मकसद किसी व्यक्ति विशेष पर टिप्पणी करना नहीं है। केवल उदगार है मन का, और इस व्यवस्था को आईना दिखा रहा हूँ कि आखिर कब बदलाव होगा, कब सुधरेगी पुरानी रवायते।

जिस तरह पढ़ेलिखे सिपाही आने से सबकी अपेक्षा बढ़ जाती है कि शायद अब सिपाही अच्छा शालीन व्यवहार करें। उसी तरह कर्मचारी भी सोचता है कि नए नए ऑफिसर आएंगे। नई ऊर्जा, नया संचार, नई आधुनिक सोच के अच्छे अधिकारी आएंगे और व्यवस्था बदलेंगे।

हो सकता है कुछ लोगो को मेरे इस संदेश से पीड़ा हो (वो व्यक्ति कोई भी हो सकता है) उन्हें बुरा लगे, पर बुरा लगने के बाद दोबारा फिर शांत मन से पढ़ना और फिर दोबारा सोचना।
क्योंकि आप भी इसी सिस्टम का हिस्सा हो, अलग नहीं।

उम्मीद है पुलिस विभाग एक परिवार की तरह एकजुट होकर जनता की भलाई के लिए काम करे। क्राइम कंट्रोल करे, अच्छी साफ छवि बनाये रखे। आपस मे जलन की भावना छोड़कर मिलजुल कर कर काम करे।
उंगली करने वाले उंगली करना छोड़ दें, चिलम्बाज़, चिलमबाजी छोड़कर अपनी छवि सुधारें, तेल लगाने वाले अपने में सुधार कर ले, कान भरने वाले हरिराम नाई का काम छोड़कर पुलिसिंग करें।
पूरा थाना एक टीम बनकर अच्छे रिजल्ट दे।
और अपने थाने को जिले का व प्रदेश का सर्वोत्तम थाना बनायें।
मेरा उद्देश्य सदैव पुलिस के मनोबल को ऊपर उठना रहता है।
🙏🙏🙏✍️विजय प्रताप सिंह

Samaj Tak
Author: Samaj Tak

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तो अब उत्तर प्रदेश की सरकार मीडिया पर भी नकेल कसना शुरू कर दिया है। अब कोई भी पत्रकार किसी विद्यालय सरकारी अथवा अर्ध सरकारी विद्यालय की हालातो पर खबर नहीं बना सकता है खबर बनाने के पहले पत्रकार को परमिशन लेनी होगी। सबसे पहले वह विद्यालय के प्रबंधक या प्रधानाचार्य की अनुमति लेगा या फिर बीएसए से आज्ञा लेकर पत्रकारिता करेगा। यह लेटर जनपद मऊ से जारी हुआ है साथ ही रायबरेली जनपद के बीएसए ने भी एक किसी पत्रकार से जरिए मोबाइल पर आदेश किया है कि बिना प्रधानाचार्य के अनुमति आप खबर नहीं बना सकते हैं अगर मौके प्रधानाचार्य नहीं तो उसका इंतजार करिए। मतलब अब खबर बनाना है तो पहले अनुमति के इंतजार करिए। रायबरेली जनपद के बीएसए और मऊ का लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जों समाज के चौथे स्तंभ को रौंद रहा है

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