रायबरेली से विजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट | समाज तक
रायबरेली में पुलिस प्रशासन पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। मामला बछरावां थाना क्षेत्र का है, जहां एक दलित युवक की पिटाई के गवाह बनने पहुंचे दो युवकों को पुलिस ने उल्टा चालान थमा दिया। सवाल ये उठता है कि जब कोई व्यक्ति न्याय की उम्मीद लेकर पुलिस के पास पहुंचता है तो उसे इस तरह अपमानित क्यों किया जाता है?
बताया जा रहा है कि हाल ही में एक मारपीट और बवाल के मामले में पुलिस ने शांति भंग की धारा में कुछ लोगों पर कार्रवाई की थी। इसी मामले में गवाही देने पहुंचे दो युवकों को न सिर्फ फटकारा गया बल्कि उनका चालान भी कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि जिनके खिलाफ शिकायत थी, वे खुलेआम घूमते रहे और गवाही देने पहुंचे लोग ही कार्रवाई का शिकार बन गए।
दलित महिला की पीड़ा, सुनने वाला कोई नहीं
मौके पर मौजूद एक दलित महिला, जो पीड़ित पक्ष की ओर से बयान देने पहुंची थी, फूट-फूट कर रोती रही। महिला का आरोप है कि उसके बेटे को जबरन फंसाया जा रहा है और जब वह न्याय की गुहार लेकर आई, तो पुलिस ने उसे डांटकर भगा दिया।
क्या दलितों की आवाज़ बेअसर है?
समाज में बराबरी की बातें तो होती हैं, लेकिन जब कानून के रखवाले ही पक्षपात पर उतर आएं तो भरोसा कहां टिकेगा? सवाल ये भी है कि क्या दलितों की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता? क्या गवाही देना अब अपराध बन गया है?
समाज तक की अपील
समाज तक मीडिया इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग करता है और प्रशासन से सवाल करता है—क्या कानून सिर्फ दिखावे के लिए है? क्या इंसाफ पाने का हक अब सिर्फ कुछ खास लोगों तक सीमित रह गया है?
