रायबरेली, 1 मई।
गुरुबक्शगंज थाना क्षेत्र में बाइक चोरी के एक मामले में पकड़े गए युवक से जुड़ी जानकारी पत्रकारों को न दिए जाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। पत्रकारों द्वारा पूछे गए साधारण मौखिक सवालों पर भी थाने की ओर से कोई जवाब न देना अब पुलिस की कार्यशैली, पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 1 मई को चोरी के संदेह में एक युवक को गुरुबक्शगंज थाने लाया गया था। स्थानीय पत्रकार जब सूचना की पुष्टि हेतु मौके पर पहुंचे तो उन्होंने थाने में मौजूद अधिकारियों से केवल यह जानना चाहा कि —
“क्या कोई आरोपी थाने में है?”
“किस मामले में लाया गया है?”
इन सामान्य सवालों के उत्तर में पुलिस ने चुप्पी साध ली और कोई स्पष्ट जानकारी देने से इनकार कर दिया।
क्या मौखिक जानकारी देने से इनकार करना नियमों के विरुद्ध है?
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह स्थिति सीधे तौर पर सूचना के अधिकार, लोकतांत्रिक मूल्यों और पत्रकारिता की स्वतंत्रता के खिलाफ जाती है।
RTI अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(h) विशेष परिस्थितियों में लिखित सूचना को रोके जाने की अनुमति देती है — जैसे कि यदि वह सूचना किसी जांच या अभियोजन को प्रभावित करती हो। लेकिन यह प्रतिबंध मौखिक रूप से जानकारी मांगने पर लागू नहीं होता।
वहीं, CrPC की धाराएं 154, 157 और 174 पुलिस को FIR दर्ज करने, प्रारंभिक जांच करने और पंचनामे जैसी प्रक्रिया अपनाने का अधिकार तो देती हैं, पर इन धाराओं में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि थाने में हुई घटना को पत्रकारों से गोपनीय रखा जाए।
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के अनुसार,
“पुलिस की जवाबदेही जनता और प्रेस दोनों के प्रति है। जब तक कोई मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, नाबालिग से जुड़ा या उच्च गोपनीय न हो, तब तक थाने में हुई सामान्य कार्रवाई की जानकारी रोकी नहीं जा सकती। यह न केवल कानून का, बल्कि लोकतंत्र का भी मूल सिद्धांत है।”
अब सवाल उठते हैं —
क्या पुलिस संदिग्ध को बचाने का प्रयास कर रही है?
क्या कार्रवाई में कोई अनियमितता छिपाई जा रही है?
क्या गुरुबक्शगंज थाने में पारदर्शिता समाप्त हो चुकी है?
इन सवालों पर पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे संदेह और भी गहरा हो गया है।
पत्रकारों के अधिकार और लोकतंत्र की सेहत
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में पत्रकारों का कार्य केवल खबर देना नहीं, बल्कि जवाबदेही सुनिश्चित करना भी है। अगर पुलिस पत्रकारों को सामान्य जानकारी देने से परहेज़ करती है, तो यह न केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर चोट है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा को भी घायल करता है।
निष्कर्ष:
गुरुबक्शगंज थाना क्षेत्र में 1 मई को घटी इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पुलिस को पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के मानकों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
सवाल पूछना पत्रकार का कर्तव्य है,
और जवाब देना पुलिस की संवैधानिक जिम्मेदारी।
रिपोर्ट: विजय प्रताप सिंह
स्थान: रायबरेली
